समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।

तुझ बिन कोई हमारा

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 रामप्रसाद बिस्मिल

तुझ बिन कोई हमारा, रक्षक नही यहाँ पर;
ढूँढा जहान सारा, तुम सा नही रखैया॥

दुनिया में खूब देखा, आँखे पसार करके
साथी नही हमारा माँ, बाप और भैया॥

सुख के सभी हैं साथी, दुनिया के मित्र सारे,
तेरा ही नाम प्यारा, दुख-दर्द के बचैया॥

दुनिया में फँस के हमको, हासिल हुआ न कुछ भी;
तेरे बिना हमारा, कोई नही सुनैया॥

चारों तरफ से हम पर, ग़म की घटा है छाई
सुख का करो उजाला, हे प्रकाश के करैया।

अच्छा - बुरा है जैसा, राजी मैं 'राम' रहता;
चेरा है यह तुम्हारा, सुधि लेउ सुधि लिवैया॥

- रामप्रसाद बिस्मिल
[यह रचना शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की स्वरचित रचना है। उपरोक्त रचना में बिस्मिल ने अपना उपनाम 'राम' लिखा है।  वे बिस्मिल के अतिरिक्त राम और अज्ञात  उपनाम से भी लिखते रहे हैं। ] 

 

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