मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।

आज ना जाने क्यों

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड

आज ना जाने क्यों फिर से
याद आ गया
नानी का वह प्यार और दुलार।

भीतर के कोठारे में
ना जाने कब से छुपा कर रखी मिठाई
हमारे स्वागत के लिये।

धोती के पल्ले में बंधे कुछ सिक्के।

आँखों में भारी असीम ममता
एक बार फिर मिल लेने की चाह।

अनगिनत दुआओँ से भरा
उनका वह झुर्रियों भरा हाथ।

अगली गर्मियों की छुट्टियों में
फिर से आने का वह न्यौता।

सभी कुछ तो याद है मुझे।
बस एक बार
आँख बंद करने की ही तो देर है!

डॉ॰ पुष्पा भारद्वाज-वुड
न्यूज़ीलैंड

 

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Posted By Anami Bhargava   on Saturday, 16-May-2020-02:07
Na Jane kyun kavita man ko chu Gaye. Hamari Nani jinhe ham mati Kahte the yaad taja ho aayee. Dr. Pushpa bhardwaj wood ko dhanyavad
 
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