साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।

कभी तुम दूर जाते हो | ग़ज़ल

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया

कभी तुम दूर जाते हो, कभी तुम पास आते हो
कभी हमको हँसाते हो, कभी हमको रुलाते हो

हमारे दिल के हर कोने में, रहते हो अगर तुम ही
उसे ही तोड़ते हो क्यूँ, जहाँ तुम घर बनाते हो।

बड़ी ऊँचाई पे मंज़िल थी पहुँची मुश्किलों से मैं
जरा अब साँस लेने दो अभी से क्यूँ गिराते हो

मैं सोती हूँ बड़ी गहरी, मुझे अब नींद आई है
रही बरसों जगी थी मैं, भला अब क्यूँ उठाते हो

मेरे जाने से होते हो, भला बेचैन क्यूँ इतने
जहाँ से लौट ना पाऊँ, वहाँ से क्यूँ बुलाते हो

ये मेरी कब्र है मुझको नहीं भाती कोई खुशबू
तो फूलों से बनी चादर, को इस पे क्यूँ चढ़ाते हो

-डॉ० भावना कुँअर
 सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)

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