हमारी हिंदी भाषा का साहित्य किसी भी दूसरी भारतीय भाषा से किसी अंश से कम नहीं है। - (रायबहादुर) रामरणविजय सिंह।

नभ में उड़ने की है मन में

 (बाल-साहित्य ) 
Print this  
रचनाकार:

 आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

नभ में उड़ने की है मन में,
उड़कर पहुँचूँ नील गगन में।
काश, हमारे दो पर होते,
हम बादल से ऊपर होते।
तारों के संग यारी होती,
चन्दा के संग सोते होते।

बिन पर सबकुछ मन ही मन में,
नभ में उड़ने की है मन में।
सुनते हैं बादल से ऊपर,
ढ़ेरों ग्रह-उपग्रह होते हैं।
उन पर जाते, पता लगाते,
प्राणी, क्या उन पर होते हैं।

और धरा से, कितने उन में,
नभ में उड़ने की है मन में।
बहुत बड़ा ब्रह्माण्ड हमारा,
अनगिन सूरज,चन्दा, तारे।
कितने, सूरज दादा अपने,
कितने, मामा और हमारे।

कैसे जानूँ, हूँ उलझन में,
नभ में उड़ने की है मन में।
दादा-मामा के घर जाते,
उनसे मिलकर ज्ञान बढ़ाते।
दादी के हाथों की रोटी,
दाल,भात औ सब्जी खाते।

लोनी, माखन, मट्ठा मन में।
नभ में उड़ने की है मन में।

-आनन्द विश्वास
  ई-मेल: anandvishvas@gmail.com

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश