जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।

विडम्बना

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 संजय भारद्वाज

ऐसा लबालब
क्यों भर दिया तूने,
बोलता हूँ तो
चर्चा होती है,
चुप रहता हूँ तो
और भी अधिक
चर्चा होती है!

संजय भारद्वाज, पुणे
ई-मेल: writersanjay@gmail.com

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश