जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।

तुमने हाँ जिस्म तो... | ग़ज़ल

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi

तुमने हाँ जिस्म तो आपस में बंटे देखे हैं
क्या दरख्तों के कहीं हाथ कटे देखे हैं

वो जो आए थे मुहब्बत के पयम्बर बनकर
मैंने उनके भी गिरेबान फटे देखे हैं

वो जो दुनिया को बदलने की कसम खाते थे
मैंने दीवार से वो लोग सटे देखे हैं

तन पे कपड़ा भी नहीं पेट में रोती भी नहीं
फ़िर भी मैदान में कुछ लोग डटे देखे हैं

जिनको लुटने के सिवा और कोई शौक़ नहीं
ऐसे इंसान भी कुछ हमने लुटे देखे हैं

-रामावतार त्यागी
[ नया ज़माना नयी ग़ज़लें ]

 

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