मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।

कंकड चुनचुन

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 कबीरदास | Kabirdas

कंकड चुनचुन महल उठाया
        लोग कहें घर मेरा। 
ना घर मेरा ना घर तेरा
        चिड़िया रैन बसेरा है॥

जग में राम भजा सो जीता ।
        कब सेवरी कासी को धाई 
कब पढ़ि आई गीता ।
        जूठे फल सेवरी के खाये  
तनिक लाज नहिं कीता ॥ 

- कबीर 

 

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