साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
सत्य की महिमा - कबीर की वाणी  (काव्य)    Print this  
Author:कबीरदास | Kabirdas

साँच बराबर तप नहीं, झूँठ बराबर पाप।
जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप॥

साँच बिना सुमिरन नहीं, भय बिन भक्ति न होय।
पारस में पड़दा रहै, कंचन किहि विधि होय॥

 

साँचे को साँचा मिलै, अधिका बढ़े सनेह॥
झूँठे को साँचा मिलै, तब ही टूटे नेह॥

सहब के दरबार में साँचे को सिर पाव।
झूठ तमाचा खायेगा, रंक्क होय या राव।

झूठी बात न बोलिये, जब लग पार बसाय।
कहो कबीरा साँच गहु, आवागमन नसाय॥

जाकी साँची सुरति है, ताका साँचा खेल।
आठ पहर चोंसठ घड़ी, हे साँई सो मेल॥

कबीर लज्जा लोक की, बोले नाहीं साँच।
जानि बूझ कंचन तजै, क्यों तू पकड़े काँच॥

सच सुनिये सच बोलिये, सच की करिये आस।
सत्य नाम का जप करो, जग से रहो उदास॥

साँच शब्द हिरदै गहा, अलख पुरुष भरपुर।
प्रेम प्रीति का चोलना, पहरै दास हजूर॥

 

साँई सों साचा रहो, साँई साँच सुहाय।
भावै लम्बे केस रख, भावै मूड मुड़ाय॥

- कबीर

 

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