मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
भारतीय | फीज़ी पर कविता (काव्य)    Print this  
Author:जोगिन्द्र सिंह कंवल | फीजी

लम्बे सफर में हम भारतीयों को
कभी पत्थर कभी मिले बबूल

कभी मिट जाती कभी जम जाती
इतिहास के दर्पण पर धूल

जिस देश को अपनाया हमने
वह टूट रहा फिर एक बार

चमन यह बिगड़ा इस तरह
काँटे बन रहे सारे फूल

- जोगिन्द्र सिंह कंवल, फीजी

 

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