जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।
परिंदे की बेज़ुबानी (काव्य)    Print this  
Author:डॉ शम्भुनाथ तिवारी

बड़ी ग़मनाक दिल छूती परिंदे की कहानी है!

कड़कती धूप हो या तेज़ बारिश का ज़माना हो,
क़हर तूफ़ान का हो या बिजलियों का फ़साना हो !
मगर वह बेबसी का ख़ौफ़ मंज़र देखने वाला,
शिकायत क्या करे जिसका दरख़्तों पर ठिकाना हो!
बयाँ कुछ कर नहीं सकता ये कैसी बेज़ुबानी है!
बड़ी ग़मनाक दिल छूती परिंदे की कहानी है!!

अगर डाली से बच जाये तो पिंजड़े में पड़ा होगा,
क़फ़स के दरमियाँ घुट-घुट्कर बेचारा बड़ा होगा !
कहीं भी चैन से पल भर परिंदा रह नहीं सकता,
किसी क़ातिल की आँखों में वह पहले से गड़ा होगा !
मुसीबत उम्र भर उसको अकेले ही उठानी है !
बड़ी ग़मनाक दिल छूती परिंदे की कहानी है !!

मुक़द्दर में भला उसके भी क्या मंज़ूर होता है ,
बेचारा एक दाने के लिये मजबूर होता है,!
हथेली पर लिये फिरता है अपनी जान को हरदम,
परिंदा जब कभी अपने वतन से दूर होता है !!
ज़मी से आसमाँ तक ज़िन्दगी उसकी वीरानी है ,
बड़ी ग़मनाक दिल छूती परिंदे की कहानी है !!

ज़रा सोचो तो कितना बेज़ुँबा-बेबस परिंदा है ,
नज़र से क़ातिलों की बच गया होगा तो ज़िंदा है !
किसे क्या फ़ायदा होगा मिटाकर ज़िंदगी उसकी,
किसी लाचार को तो मारने वाला दरिंदा है !
यह कैसी बेकसी की दास्ताने- ज़िंदगानी है !
बड़ी ग़मनाक दिल छूती परिंदे की कहानी है !!

वो होकर बेज़ुबाँ भी बदगुमानी छोड़ देता है ,
दिलों के दरमियाँ बेनाम रिश्ते जोड़ देता है !
कभी इस मुल्क तो उस मुल्क उड़कर पहुँचनेवाला,
परिंदा सरहदों की बंदिशें भी तोड़ देता है !!
ये नन्हा सा फ़रिश्ता अम्न की ज़िंदा निशानी है !
बड़ी ग़मनाक दिल छूती परिंदे की कहानी है !!


- डॉ. शम्भुनाथ तिवारी
  एसोशिएट प्रोफेसर
  हिंदी विभाग,
  अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी,
  अलीगढ़(भारत)
  संपर्क-09457436464
  ई-मेल: sn.tiwari09@gmail.com

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