मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
दीप जलाओ | दीवाली बाल कविता (बाल-साहित्य )    Print this  
Author:भारत-दर्शन संकलन | Collections

दीप जलाओ दीप जलाओ
आज दिवाली रे
खुशी-खुशी सब हँसते आओ
आज दिवाली रे।

मैं तो लूँगा खील-खिलौने
तुम भी लेना भाई
नाचो गाओ खुशी मनाओ
आज दिवाली आई।

आज पटाखे खूब चलाओ
आज दिवाली रे
दीप जलाओ दीप जलाओ
आज दिवाली रे।

नए-नए मैं कपड़े पहनूँ
खाऊँ खूब मिठाई
हाथ जोड़कर पूजा कर लूँ
आज दिवाली आई।

- अज्ञात

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