मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति (काव्य)    Print this  
Author:केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal

महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति

कवि! वह कविता जिसे छोड़ कर
चले गए तुम, अब वह सरिता
काट रही है प्रान्त-प्रान्त की
दुर्दम कुण्ठा--जड़ मति-कारा
मुक्त देश के नवोन्मेष के
जनमानस की होकर धारा।

काल जहाँ तक प्रवहमान है
और जहाँ तक दिक-प्रमान है
गए जहाँ तक वाल्मीकि हैं
गए जहाँ तक कालिदास हैं
वहाँ-दूर तक प्रवहमान है
आँसू-आह-गीत की धारा
तुमने जिसको आयुदान दी
और जिसका रूप सँवारा।
आज तुम्हारा जन्म-दिवस है
कवि, यह भारत चिरकृतज्ञ है।

-केदारनाथ अग्रवाल
साभार : देश-देश की कविताएं

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A poem by Kedarnath Agarwal that was dedicated to Rabindranath Tagore
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