मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
महाकवि और धारा 420 सीसी की छूट (विविध)    Print this  
Author:प्रो. राजेश कुमार

महाकवि रोज़-रोज़ की बढ़ने वाली क़ीमतों, पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों में लगी हुई आग, और रोज़-रोज़ लगाए जाने वाले तरह-तरह के टैक्स से बहुत परेशान थे। वे अपनी वेतन पर्ची में देखते थे की उनकी तनख़्वाह तो दिनोदिन घटती जा रही है, जो टैक्स का कॉलम जो था, वह दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। उन्हें ऐसा लगने लगा था कि शायद वे अपने लिए नहीं, बल्कि सरकार के लिए ही कमाई कर रहे हैं। सरकार कर-पर-कर लगाए जा रही है, और यहाँ कर में कुछ नहीं बचता – ऐसी परेशानी में भी उन्हें कविता सूझने लगी थी।

इस बार जब उन्होंने अपनी वेतन पर्ची देखी, तो उसमें उन्हें एक नया आइटम दिखाई दिया - पॉलिटिकल सेस। और उसके अंतर्गत बेदर्दी से काफ़ी पैसा काट लिया गया था। महाकवि को यह देखकर तो ऐसा लगा, मानो कोई साँप दिख गया हो। इनके ख़र्चे वैसे ही पूरे नहीं पड़ रहे थे, और अब यह नया सेस दिखाई दिया, तो उन्हें लगा कि अब तो खाने के भी मांदे पड़ जाएँगे।

उन्होंने अपने साथियों से इसकी जानकारी लेनी चाहिए, तो वे सब भी परेशान हालत में ही दिखे, क्योंकि किसी को भी इस बारे में कुछ पता नहीं था। महाकवि को लगा कि शायद अकाउंटेंट इस बारे में कोई जानकारी दे सकें। वे अकाउंटेंट के पास पहुँचे, तो सबसे पहले तो अकाउंटेंट ने उनसे परामर्श के सेस के रूप में समोसे और चाय मँगवाने का आग्रह कर दिया। यह सेस उदरस्थ करने के बाद, अकाउंटेंट ने बताया की यह पॉलिटिकल सेस हाल ही में सरकार ने लगाया है।

महाकवि द्वारा इसका कारण पूछे जाने से पहले ही, अकाउंटेंट ने खुलासा किया कि इसका कारण यह है कि सरकार को पॉलिटिकल हेड में बहुत ज़्यादा ख़र्चा करना पड़ रहा है, जिसे पूरा करने के लिए सरकार ने यह सेस लगाया है। उसने बताया कि यह ख़र्चा हॉर्स ट्रेनिंग करने, उन्हें रिसॉर्ट में रखने, उनके लिए प्लेन चार्टर्ड करने, उनकी आवभगत करने, इस काम में लगे बिचौलियों को कमीशन देने, अदालत में उनका केस लड़ने, उन्हें और उनके परिवार वालों को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करने, आदि में अब सरकार को बहुत अधिक खर्च करना पड़ रहा है, जिसमें पहले उनके उद्योग पति मित्र मदद कर दिया करते थे, लेकिन यह खर्चा अब इतना ज्यादा हो गया है और इतना बार-बार होने लगा है कि उन्होंने भी अब हाथ खड़े कर दिए हैं। यही कारण है कि मजबूर होकर सरकार ने ये सेस लगाया है।

“लेकिन, जहाँ तक मैं समझता हूँ, सेस तो थोड़े समय के लिए लगाया जाता है, और जब वह काम पूरा हो जाता है तो इसे हटा लिया जाता है।” महाकवि ने आशा भरे स्वर से पूछा।

“हाँ, नियम तो यही कहते है।” अकाउंटेंट ने नियमों की व्याख्या करते हुए कहा, “लेकिन, आप मुझे एक भी ऐसा शेष सेस बताएँ, जिसे लगाने के बाद हटा लिया गया हो। दरअसल उस सेस को नियमित करने के लिए टैक्स में शामिल कर दिया जाता है, और ऐसा लगता है कि वह हटा लिया गया है, लेकिन वह बरकरार रहता है, जैसे ईश्वर के रूप बदलते रहते हैं, लेकिन वह हमेशा मौजूद रहता है।”

महाकवि काफ़ी देर तक विचारमग्न रहे, फिर उन्हें याद आया कि कई तरह की ऐसी योजनाएँ होती है, जिनमें निवेश करने से, टैक्स में राहत मिल जाती है। उन्होंने इस बात को ध्यान में रखते हुए अकाउंटेंट से पूछा, “तो इससे बचने का कोई उपाय भी तो होगा?”

“हाँ, है ना!” अकाउंटेंट ने ज्ञान दान किया, “अगर आप पार्टी को चंदा दे देते हैं, तो वह पूरा का पूरा चंदा धारा 420 सीसी के अंतर्गत टैक्स-योग्य आय से निकाल दिया जाता है। इसके अलावा अगर आप यह साबित कर देते हैं कि आप पार्टी के कामों में सक्रिय रूप से योगदान करते हैं, तब भी आपको इस सेस का रिफ़ंड हो जाता है।”

यह सुनकर महाकवि को सारे रास्ते बंद ही नज़र आए, क्योंकि उन्हें इन तरीकों में अपने लिए कोई राहत नज़र नहीं आ रही थी। उन्होंने बहुत तिक्त स्वर में सरकार की आलोचना करते हुए कहा, “नौकरी पेशा आदमी का तो अब मरण ही समझो। और वे लोग अच्छे हैं, जो सरकारी पैसे को लूटकर विदेशों में जाकर मज़े करते है!”

“हाँ, अगर आप सरकारी पैसे को लूट लेते हैं, या रिश्वत का पैसा लेते हैं, या टैक्स की चोरी करते हैं, पैसे की धाँधली करते हैं, तो उन सब चीज़ों पर यह पॉलिटिकल सेस लागू नहीं होता।” अकाउंटेंट ने कहा, और अपनी फ़ाइल खोलकर उसमें घुस गया, जिसका संकेत यह था कि महाकवि अब आगे का रोना अपनी सीट पर जाकर कर सकते हैं।

-प्रो. राजेश कुमार

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