शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।
गुरु महिमा (काव्य)    Print this  
Author:संत पलटूदास

संत पलटूदास गुरु की महिमा का गुणगान करते हुए कहते हैं:

आपै आपको जानते, आपै का सब खेल।
पलटू सतगुरु के बिना, ब्रह्म से होय न मेल॥

पलटू उधर को पलटिगे, उधर इधर भा एक।
सतगुरु से सुमिरन सिखै, फरक परै नहिं नेक॥

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