शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।
जै-जै कार करो (काव्य)    Print this  
Author:अजातशत्रु

ये भी अच्छे वो भी अच्छे
जै-जै कार करो
डूब सको तो
चूल्लू भर पानी में डूब मरो

लेकर आप बिराजै लड्डू
दोनों हाथों में
मुँह के मीठे
अवसरवादी
रिश्ते-नातों में

अब तो मुई सफ़ेदी आई
कुछ तो शर्म करो
भीतर चुप्प मुखौटे बोले
हँसकर गले मिले
ईर्ष्याओं के द्वार
हृदय के पन्ने जले मिले
कुशलक्षेम तो पूछो लेकिन
अवगुन चित न धरो

-अजातशत्रु

 

Previous Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश