मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
चेहरे से दिल की बात | ग़ज़ल  (काव्य)    Print this  
Author:अंजुम रहबर

चेहरे से दिल की बात छलकती ज़रूर है,
चांदी हो चाहे बर्क चमकती ज़रूर है।

दिल तो कई दिनों से कहीं खो गया मगर,
पहलू में कोई चीज़ धड़कती ज़रूर है।

कमज़र्फ कह रहे हो मगर ये भी जान लो,
हो आँख या शराब छलकती ज़रूर है।

ये और बात है कोई महसूस कर न पाये,
हर दिल में कोई आग भडकती जरूर है।

छुपती कभी नहीं है मोहब्बत छुपाये से,
चूड़ी हो हाथ में तो खनकती ज़रूर है।

हम झुक के मिल रहे हैं तो कमजोर मत समझ,
फलदार शाख हो तो लचकती ज़रूर है।

अल्फाज़ फूल ही नहीं कांटे भी हैं मगर,
अंजुम कहे ग़ज़ल तो महकती ज़रूर है।

                           -अंजुम रहबर

 

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