हमारी हिंदी भाषा का साहित्य किसी भी दूसरी भारतीय भाषा से किसी अंश से कम नहीं है। - (रायबहादुर) रामरणविजय सिंह।
तू इतना कमज़ोर न हो (काव्य)    Print this  
Author:राजगोपाल सिंह

तू इतना कमज़ोर न हो
तेरे मन में चोर न हो

जग तुझको पत्थर समझे
इतना अधिक कठोर न हो

बस्ती हो या हो फिर वन
पैदा आदमखोर न हो

सब अपने हैं सब दुश्मन
बात न फैले, शोर न हो

सूरज तम से धुँधलाए
ऐसी कोई भोर न हो

- राजगोपाल सिंह

 

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