साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।

कैसा विकास (काव्य)

Print this

Author: प्रभाकर माचवे

यह कैसा विकास
चारों और उगी है केवल
गाजर घास
गाजर घास।

चेहरे मुरझाए मुर्दाने
सभी उदास
सभी उदास
( पंकज भी है यहां उधास)
नहीं पता है कौन दूर है
और कौन है पास
वातानुकूलित कमरों में कवि
गाते असंपृक्त संत्रास
रोना आता है सुन सुनकर
उनका हास और परिहास।

छुट्टी में बच्चे गाते हैं
या तो फिल्मों की बकवास
या कि खेलते ताश।

सूख गए सारे पलाश
अब शब्दकोश में है मधुमास
कालिदास के मधुर समास
सब ‘खल्लास'
सन 50 के अनुप्रास सब
खाली बोतल और गिलास
चारों ओर दिखा देती
गाजर घास गाजर घास।

प्रभाकर माचवे
[धर्मयुग, दिसंबर, 1992 ]

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश