वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।

तीन कवितायें (काव्य)

Print this

Author: डॉ.प्रमोद सोनवानी

पर्यावरण बचाना है

 

धरा को स्वर्ग बनाना है,
पर्यावरण बचाना है ।
गाँव-गाँव हर गली -गली में,
हमको वृक्ष लगाना है ।।1।।
पेड़-पौधे देते हैं जग को,
शीतल छाया और हवा ।
इसलिए मिल-जुलकर हमको,
करना है वृक्षों की सेवा ।।2।।
परम हितैषी पेड़ सभी,
अब न काटें इसे कभी ।
मिल-जुलकर अब वृक्षों की,
देखभाल करेंगे हम सभी ।।3।।
वृक्षारोपड़ करना है,
जीवन सुखद बनाना है ।
प्यारे बच्चों इस दुनियाँ में,
पर्यावरण बचाना है ।।4।।

 

 

उड़न खटोला

जा रहा था पढ़ने शाला ,
कंधे पर लटकाकर झोला ।
ठिठक गया था अजी देखकर ,
नील गगन में उड़न खटोला ।।1।।

रंग -बिरंगे रंगों से जी ।
सजा हुआ था उड़न खटोला ।।2।।

तेज गति से सर-सर, सर-सर ।
उड़ रहा था उड़न खटोला ।।3।।

सचमुच देखा था मैं उस दिन ।
सपने में इक उड़न खटोला ।।4।।

 

नाना जी के आँगन में


दाना चुगती,चिड़िया रानी ,
नाना जी के आँगन में ।
चिं-चिं,चिं-चिं गाना गाती ,
नाना जी के आँगन में ।।1।।
बड़ी सलोनी है मतवाली ,
खूब फुदकती डाली-डाली ।
रंग जमाने को आ जाती ,
नाना जी के आँगन में ।।2।।
नदियाँ-झीलें , ताल-तलैया ,
खेत-खार में जाती भैया ।
फिर सुस्ताने को आ जाती ,
नाना जी के आँगन में ।।3।।

- डॉ.प्रमोद सोनवानी "पुष्प"
संपादक- "वनाँचल सृजन"
"श्री फूलेंद्र सहित्य निकेतन"
तमनार, पड़ीगाँव-रायगढ़ (छ.ग.)
भारत

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश