साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।

मुक्ता (काव्य)

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Author: सोहनलाल द्विवेदी

ज़ंजीरों से चले बाँधने
आज़ादी की चाह।
घी से आग बुझाने की
सोची है सीधी राह!


हाथ-पाँव जकड़ो,जो चाहो
है अधिकार तुम्हारा।
ज़ंजीरों से क़ैद नहीं
हो सकता ह्रदय हमारा!

-सोहनलाल द्विवेदी

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