समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।

मेरी मातृ भाषा हिंदी  (काव्य)

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Author: सुनीता बहल

मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।  
देश की है यह सिरमौर,
अंग्रेजी का न चलता इस पर जोर। 
विश्वव्यापी भाषा है चाहे अंग्रेजी,
हिंदी अपनेपन का सुख देती।
मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।

देवनागरी में लिखी जाती,
जैसी बोली वैसी लिखी जाती।
यही हमारी विश्वव्यापी है पहचान,
हिंदी का हमे करना है सम्मान।
मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।

बड़ा ना छोटा अक्षर कोई,
भेदभाव ना इसमें कोई। 
शब्द का हर सही अर्थ है बताती ,
हर रिश्ते को अलग शब्दों में है समझाती।
मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।

तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली है यह भाषा,
इसका सम्मान बढ़ाना है हमे सबसे ज्यादा।
इस श्रेष्ठ भाषा के है हम ज्ञाता,
संस्कृत ,अरबी से इसका है गहरा नाता।
मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।

हिंदी नहीं किसी दिवस की मोहताज़,
करती है अब भी हर दिल पर राज।
निराशा का कोहरा अब है छंट गया,
हिंदी भाषा का दौर फिर से आ गया। 
मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।

-सुनीता बहल
sunbahl.16@gmail.com

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