साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।

बोझा | लोक कथा (कथा-कहानी)

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Author: भारत-दर्शन संकलन

एक कुम्हार गधे पर नमक का परचूनी व्यापार करता था। रास्ते में एक नदी पड़ती थी। नदी पार करने में गधे की आफत आ जाती थी। एक दिन अनजाने में उसका पांव फिसल गया। पीठ पर बंधा सारा नमक गलकर बह गया। गधे की मनचाही हो गई। उसके बाद तो गधे ने यही लत पकड़ ली। नदी आते ही पानी में बैठ जाता।

कुम्हार बड़ा परेशान। उसकी इतनी हैसियत न थी कि लगातार इस हानि को बरदाश्त करे। आखिर नमक का व्यापार बंद करना पड़ा। एक दिन वह ऊन का बोरा गधे पर लाद कर लाया। गधे को तो आदत ही वैसी पड़ गई थी। नदी के बीच पानी में बैठ गया। थोड़ी देर आराम करने के बाद जब खड़ा हुआ तो जाने बोझ का पर्वत ही ऊपर आ पड़ा। खड़ा होने के साथ ही धड़ाम से वापस नीचे आ गिरा।

मामूली अक्ल के बोझ से उसकी कमर टूट गई। मौत के पहले ही उसे मरना पड़ा।

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