वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।

एक गहरा दर्द... | ग़ज़ल (काव्य)

Print this

Author: अश्वघोष

एक गहरा दर्द पलता जा रहा है
आदमी का दम निकलता जा रहा है

सज रही है, बस्तियाँ बुलडोजरों से
देश का नक्शा बदलता जा रहा है

हाथ उनके खून में भीगे हुए है
फ़र्ज का दामन फिसलता जा रहा है

बर्फ की इन सिल्लियों को क्या पता है
चेतना का जिस्म गलता जा रहा है

ऐ मेरे हमराज़! बढ़कर रोक ले
रोशनी को, तम निगलना जा रहा है

-अश्वघोष

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश