मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।

गोरख पांडेय की दो कविताएं (काव्य)

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Author: गोरख पांडेय

आँखें देखकर

ये आँखें हैं तुम्हारी
तकलीफ़ का उमड़ता हुआ समुन्दर
इस दुनिया को
जितनी जल्दी हो बदल देना चाहिए।

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उनका डर

वे डरते हैं किस चीज से डरते हैं वे
तमाम धन-दौलत गोला-बारूद पुलिस - फ़ौज के बावजूद ?
वे डरते हैं कि एक दिन
निहत्थे और ग़रीब लोग
उनसे डरना
बंद कर देंगे।

- गोरख पांडेय

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