भारतेंदु और द्विवेदी ने हिंदी की जड़ पाताल तक पहुँचा दी है; उसे उखाड़ने का जो दुस्साहस करेगा वह निश्चय ही भूकंपध्वस्त होगा।' - शिवपूजन सहाय।

उसकी औक़ात (कथा-कहानी)

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Author: हंसा दीप

चेयर के चयन के परिणाम सामने थे। मिस्टर कार्लोस एक बार फिर विभागाध्यक्ष चुन लिए गए थे पर उनके चेहरे पर वह खुशी नहीं थी। हालाँकि फिर से कुर्सी मिलने में कोई संदेह तो नहीं था फिर भी एक अगर-मगर तो बीच में था ही। किसके मन में क्या चल रहा है, किसके अंदर चल रही सुगबुगाहट कब बाहर आ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता! बड़े तालाबों की छोटी मछलियों की ताकत का अंदाज़ लगाने के लिए कुछ प्रतिशत संदेह तो हमेशा रहता ही है। खास तौर पर जब कोई बड़ा परिणाम आने वाला हो तब तो कई बार छोटी-छोटी बातें भी अपना हिसाब माँग लेती हैं। ऐसे मौकों पर कोई भी अपने अंदर की भड़ास निकाल दे तो आश्चर्य की कोई बात नहीं।

इस बार एक ही केस ऐसा हुआ था जिसकी वजह से दोबारा कुर्सी मिलने में उन्हें थोड़ा संदेह था। वह था मिस हैली के खिलाफ एक्शन लेना क्योंकि वह क़दम तो मिस्टर कार्लोस के गले की घंटी बन गया था। यहाँ-वहाँ हर जगह इसकी चर्चा हुई और ख़ामख़्वाह यह घटना मिस्टर कार्लोस की जमी-जमायी साख़ को बट्टा लगा गयी थी। इस हार से मानसिक रूप से उबरने में उन्हें काफी समय लगा। एक ऐसी हार जिसमें उनकी जीत सौ प्रतिशत तय थी। अचानक पासा पलटा और वे हारे हुए खिलाड़ी की तरह चुप बैठने के अलावा कुछ कर नहीं पाए, मन मसोस कर रह गए।

ऐसा क्यों हुआ इस बारे में लाख सोचा, अपने खास लोगों से चर्चा भी की परन्तु कोई कारण समझ में नहीं आया कि ऐन मौके पर कैसे डीन ने एक नये प्राध्यापक का सपोर्ट किया बजाय इसके कि सालों से काम करने वाले विभाग के सम्माननीय अध्यक्ष का सपोर्ट करे। कहाँ और क्यों वाले सवाल आज भी उन्हें उलझा कर रख देते हैं। कभी कोई निर्णय ऐसा नहीं हुआ था कि कोई मिस्टर कार्लोस के ऊपर उँगली उठाए लेकिन मिस हैली के मामले में इतना होमवर्क करके अपना मजबूत पक्ष रखने के बावजूद उन्हें मुँह की खानी पड़ी थी।

वैसे एक्शन लेने का यह क़दम उठाना बहुत ज़रूरी हो गया था क्योंकि एक तो मिस हैली अपने आपको न जाने क्या समझती थी। कभी हाय-हलो नहीं करती, कभी विभागीय मीटिंग में हाथ खड़ा नहीं करती, कभी किसी प्रकार का कोई प्रश्न भी नहीं पूछती, न ही कभी उनकी तारीफ़ में एक भी शब्द कहती। हैली की यह खामोशी वे अधिक दिन तक नज़रअंदाज़ नहीं कर पाए। उसकी चुप्पी में मिस्टर कार्लोस को उसका अहं दिखा, उसकी हेकड़ी दिखी, उसकी घमंडी कार्यशैली दिखी।

एक दीवार थी बॉस और मातहत के बीच में। मिस हैली को मिस्टर कार्लोस पसंद नहीं और मिस्टर कार्लोस को मिस हैली पसंद नहीं, ऐसा विचार उन दोनों के दिमाग में कुंडली मार कर बैठ गया था। दोनों एक दूसरे से कन्नी काटते थे। मिस्टर कार्लोस का कन्नी काटना तो ठीक था उनके पास अधिकार थे, विभाग के सर्वेसर्वा होने के तेवर थे और एक लम्बे प्राध्यापकीय जीवन के अनुभव थे। मिस हैली तो नयी-नयी लड़की थी जिसने अभी-अभी ज्वाइन किया था, जिसके सिर पर हमेशा ही तलवार लटकती रहती कि कभी भी नौकरी चली जाएगी पर फिर भी उसका घमंड ऐसा कि चेहरा तो चेहरा, आँखें भी मिस्टर कार्लोस के खिलाफ संदेश देती रहती थीं। जाने क्या था उन आँखों की चुप्पी में जो बिन बोले भी बहुत कुछ बोल जाती थीं, बगावत का संदेश भी अनायास ही मिस्टर कार्लोस तक पहुँचा देती थीं।    

यह मौन लड़ाई बहुत जल्दी कागजी लड़ाई में बदल गयी जब हैली ने फाइनल परीक्षा के पहले अपनी कक्षा में रिवीज़न के लिए एक सेम्पल प्रश्नपत्र दिया। इतने कम समय में मिस हैली की प्रतिभा से छात्रों में वह काफी लोकप्रिय हो गयी थी। सबसे ज्यादा छात्र मिस हैली की कक्षा में होते थे और सभी मिस हैली की मित्रवत अध्यापन शैली से प्रभावित थे। इससे जलती हैली की सहकर्मी मिस शनाया किसी न किसी तरह उसे नीचा दिखाने का बहाना ढूँढती रहती थी। वह मिस्टर कार्लोस के उन खास लोगों में से थी जो गाहे-बगाहे चेम्बर के चक्कर लगाते रहते थे।

शनाया के लिये हैली की लोकप्रियता को सहन करना विषैला कड़वा घूँट पीने जैसा था। सारा काम वह करे और छात्रों की वाहवाही हैली लूट कर ले जाए यह कब तक सहन किया जा सकता था। उसने अपने खास छात्रों को मिस हैली के छात्रों से मेलजोल बढ़ाने को उकसा कर जानने का प्रयास किया कि उसकी कक्षा में क्या-क्या होता है। आखिरकार ऐसा क्या है जो छात्र इतने उदार होकर उसकी प्रशंसा करते हैं। इस जुगाड़ से कुछ हाथ आया, ऐसा जिससे मिस हैली को नीचा दिखाया जा सकता था।

विश्वस्त सूत्रों से पता चला कि मिस हैली ने अपनी कक्षा को फाइनल परीक्षा के पहले जो रिवीज़न के लिए सेम्पल प्रश्नपत्र दिया है वह असली पेपर को आउट करने जैसा ही है। जिस प्रश्नपत्र को विभाग के पाँच लोगों ने मिलकर तैयार किया है उनमें मिस हैली भी थीं। वह रिवीज़न पेपर बाकायदा विभागाध्यक्ष को ईमेल किया गया यह कह कर कि मिस हैली ने अपने पद की आचारसंहिता का उल्लंघन किया है। इसके प्रमाण अटैच किए गए हैं। जब सारे प्रमाणों पर नजर डाली गयी तो मिस्टर कार्लोस की आँखें चमक गयीं। ठीक वैसे ही जैसे शेर की आखें चमक जाती हैं अपने शिकार को देखकर, क्रूर और ताकतवर आँखें किसी कमजोर प्राणी को दबोचती हुईं।   

बस फिर क्या था। विभागीय कार्यवाही शुरू हो गयी। एक के बाद एक नोटिस देने का सिलसिला शुरू हुआ जिनमें कहा गया था– “आप एक जिम्मेदार पद पर काम करते हुए ऐसे गैरजिम्मेदार कदम कैसे उठा सकती हैं। उचित कारण बताइए वरना आपकी नौकरी खतरे में पड़ सकती है।”

“आपने अपने छात्रों को फाइनल पेपर आउट कर दिया है, यह सरासर नियमों का उल्लंघन है।” मिस हैली को लगातार मिलते ये नोटिस उसकी कार्य शैली पर प्रश्न खड़े कर रहे थे। हैली को पता था कि उसने कुछ गलत नहीं किया है। वह साबित कर देगी कि व्याकरण के जो पाठ पढ़ाए गए थे वे सारे पाठ्यक्रम का हिस्सा थे, अगर उनका रिवीज़न करवाने की बात सेम्पल प्रश्नपत्र में होती है तो आचार संहिता का उल्लंघन कैसे होता है! दूसरा, अगर भाषा की कक्षा है तो जिन कवियों-लेखकों को पढ़ाया गया है वह सब रिवाइज़ करने के लिए कहा ही जाएगा। इसमें प्रश्नपत्र आउट करने की बात कहाँ से आ सकती है, वे तो फाइनल परीक्षा का हिस्सा होंगे ही क्योंकि वे पाठ्यक्रम का अहम हिस्सा हैं। 

दोनों के अपने वाजिब बिन्दु थे, वाजिब कारण थे। विभागाध्यक्ष का केस बनाने के लिए विभाग के कई लोग काम कर रहे थे। समूचा विभाग एक ओर, मिस हैली दूसरी ओर। कमेटी बैठायी गयी जाँच के लिए।

मिस्टर कार्लोस और मिस हैली के बीच की जंग शुरू हो गयी थी। यह जंग अब विभाग के मान-सम्मान से जुड़ गयी थी। एक और सक्षम सत्ता के लम्बे हाथ थे तो दूसरी ओर हैली के कटे हाथ थे जहाँ यूनियन भी उसका पक्ष लेने से कतरा रही थी। जो कुछ करना था हैली को ही करना था लेकिन वह करती भी क्या, उसके करने के लिए कुछ था ही नहीं। सिर्फ छात्रों के बीच अपनी लोकप्रियता के अलावा कुछ भी ठोस नहीं था। वह सेम्पल पेपर था जो खुद उसके विरोध में चिल्ला-चिल्ला कर बोल रहा था, बोल ही नहीं रहा था बल्कि उसके खिलाफ गवाही दे रहा था।  

अगले दिन कमेटी के सामने दोनों को अपने-अपने पक्ष रखने थे। मिस्टर कार्लोस के साथ उनकी पूरी टीम ने सुनियोजित तरीके से सभी कागज़ातों की फाइल बनायी और सिलसिलेवार एक के बाद एक आरोपों को साक्ष्य समेत अटैच कर दिया गया ताकि मीटिंग में मिस्टर कार्लोस को सब कुछ क्रमवार मिल जाए। विभागाध्यक्ष होने के नाते मिस्टर कार्लोस के तर्क सप्रमाण थे, वहीं मिस हैली के तर्क जबानी थे। किसी कागज या कागज पर लिखे बिन्दुओं पर विश्वास करने के बजाय वह ऐसे ही जाना चाहती थी, जो समय पर कहना होगा कह देगी। जो सच है उसके लिए किसी क्रमगत प्रमाण की जरूरत थी ही नहीं। अपने और छात्रों के बीच के संबंधों को उजागर करने के अलावा उसके पास कुछ था भी नहीं। जो भी था वह केवल और केवल इस मुद्दे पर आधारित था कि मिस हैली को अपने छात्रों की चिन्ता है।          

पहली मीटिंग में दोनों पक्षों को सुनने के बाद जाँच अधिकारी ने अगली मीटिंग रखी। यह मीटिंग डीन और प्राचार्य के साथ थी। विभागीय पक्ष अपने केस को मजबूत करने के लिए साक्ष्य जुटाता रहा। पहली मीटिंग में तय सा दिखा था कि विभाग जीत रहा है। मिस्टर कार्लोस का केस मजबूत था। सारा विभाग उनके साथ था क्योंकि कुर्सी अकेली नहीं होती उसके चार पैर होते हैं, हत्थे भी होते हैं, टिके रहने के लिए मजबूत पीठ होती है और बैठने के लिए आरामदेह गद्देदार बैठक होती है। ये सारे कुर्सी के उर्जे-पुर्जे कई चमचों की कतार खड़ी कर देते थे। इसी कुर्सी के बलबूते पर कार्लोस विश्वस्त थे कि इस बार हैली की छुट्टी कर ही देंगे। हैली का अति आत्मविश्वास और ज्ञान सबको चुभ रहा था। यही वजह थी कि उसके इस व्यक्तित्व की मजबूती बाहर आकर दंभ का काम करती थी। उसके स्वभाव का यह पहलू कई लोगों को ईर्ष्या की आग में लपेटता था, अपने ख़िलाफ खड़े होने के लिए माहौल तैयार करता था। मिस हैली के लिए इन सब लोगों के विचार मिस्टर कार्लोस के पक्ष में जा रहे थे।

ऐसा भी नहीं था कि मिस हैली इतनी नादान थी कि कुर्सी की ताकत को नहीं पहचानती थी लेकिन वह यह भी जानती थी कि कुर्सी के दायरों में सेंध लगाने के लिए हिम्मत की आवश्यकता है, किसी डर की नहीं। यह उसके कैरियर की शुरुआत है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो ऐसे भविष्य में उसकी प्रतिभा का दम घुट जाएगा। इसलिए “अभी नहीं तो कभी नहीं” वाली दृढ़ मानसिकता थी उसकी।

हालांकि एक के बाद एक हो रही इन मीटिंग और आरोप-प्रत्यारोपों की इस शृंखला ने हैली को झिंझोड़ कर रख दिया था। आखिर थी तो वह एक इंसान ही, इस नए पद पर कितने दिन तक अपने तर्कों के बलबूते पर खड़ी रहती, पैर डगमगाने लगे थे।

आज डीन के साथ आखिरी मीटिंग थी जहाँ निर्णय लिया जाना था कि मिस हैली के खिलाफ क्या एक्शन लिया जाए। कहीं से कोई सपोर्ट नहीं मिल रहा था मिस हैली को। यूनियन का एक मददगार साथी था जो स्वयं हैली को समझा चुका था- “जिस तरह मीटिंग में उत्तेजित होकर आप अपने विभागाध्यक्ष से बात करती हैं वहीं पर आप अपने खिलाफ कई सबूत पेश कर देती हैं।”

“अगर मैं जोर से न बोलूँ तो मेरी बात सुनेगा कौन। मैं ऐसे कई लोगों के उदाहरण दे सकती हूँ जिन्होंने ऐसे कई रिवीज़न पेपर दिए और किसी को मुद्दा नहीं बनाया गया, सिवाय मेरे। यह मेरे खिलाफ बिछायी गयी शतरंजी बिसात है जिसमें मुझे चारों ओर से घेर कर शह और मात की औपचारिकता की प्रतीक्षा की जा रही है।”

“मिस हैली, आपको यह समझना होगा कि आपकी नौकरी इस समय खतरे में है।”

“मैं कोर्ट में जाऊँगी अगर मुझे नौकरी से निकाला गया। जिस लड़की के खिलाफ मेरे पास सबूत हैं उसके मिस्टर कार्लोस से अफेयर चल रहे हैं, मैं उस बात को सबके सामने लाऊँगी।”

“रिलेक्स मिस हैली, यह उनका व्यक्तिगत मामला है इसे आप काम से नहीं जोड़ सकतीं। आपका यह एटीट्यूड आपके ही खिलाफ जा रहा है, अगर आप सच प्रस्तुत कर रही हैं तो उसे पेश करने में किसी एटीट्यूड की जरूरत नहीं है।”

“मैंने कोई गलत काम नहीं किया, मुझे कोई डर नहीं है। इस तरह मैं कुर्सी की चापलूसी न कर सकती हूँ, न ही करूँगी। जहाँ कोई मुद्दा नहीं था वहाँ इसे मुद्दा बनाया गया और जहाँ असली मुद्दा था वहाँ उसे रफा-दफा कर दिया गया।”

“मिस हैली जब भी आप कुछ बोलें, अपने मामले से संबंधित ही बोलें तो बेहतर होगा।”

“मैं तो चुप थी इन लोगों ने मुझे बोलने पर मजबूर किया है। मुझे जो धक्का दिया है वह उल्टा उन पर ही वार करेगा। मेरा तो अधिक नुकसान नहीं होगा पर इनकी इतने साल की नौकरी का भट्ठा बैठ जाएगा।” मिस हैली के लिए यह बेहद निराशाजनक था कि यूनियन, जिसे उसका साथ देना चाहिए वे भी उसके खिलाफ बोलने लगे थे।  

डीन के साथ मीटिंग शुरू होने वाली थी, आज मिस हैली शांत थी। जानती थी बहुत बोल ली, अब उसके कागज बोलें तो ठीक है, नहीं बोलें तो अंधे कानून को बोलने दो। “हाय-हलो” के बाद एक कंपन था शरीर में, एक साजिश में फँसने का कंपन, अपनी नौकरी जाने का कंपन, अपने काम में ईमानदार होने का कंपन।

सबसे पहले डीन ने हैली को अपना पक्ष रखने के लिए कहा।

वह शांत स्वर में बोली – “अगर फाइनल परीक्षा में कवियों और लेखकों के बारे में पूछा गया है तो हाँ, मैंने उसका रिवीज़न करवाया है। अगर यह गलत है तो मेरा व्याकरण पढ़ाना भी गलत था क्योंकि वह व्याकरण मैंने नहीं बनायी थी बल्कि किसी की किताब से चोरी की थी। यह कॉपीराइट एक्ट का उल्लंघन है।”

“मेरा सेम्पल प्रश्नपत्र अगर जाँच के दायरे में है तो उन सबका भी होना चाहिए जिन्होंने अपनी-अपनी कक्षा में रिवीज़न पेपर दिये हैं।”

“मैं अपने छात्रों को फाइनल परीक्षा के लिए तैयार कर रही थी अगर यह गलत है तो मेरे खिलाफ कार्रवाई की जाए। मैंने जो कुछ पढ़ाया वह सब इस प्रश्नपत्र में था, जो कुछ पढ़ाया है उसी को रिवाइज़ करना चाहती थी। भाषा को पढ़ाते हुए भी मैंने पूरी व्याकरण किसी दूसरी किताब से ली थी क्योंकि मेरी अपनी कोई व्याकरण नहीं है। इस तरह मैं हर जगह कॉपी ही कर रही थी, नया कुछ नहीं दे रही थी। ठीक वैसे ही मैंने अपना सेम्पल प्रश्नपत्र भी कॉपी किया है।”

डीन ने हैली के सारे बिन्दु नोट किए। अब मिस्टर कार्लोस की बारी थी– “मैं कुछ कहना नहीं चाहता, बस दोनों प्रश्नपत्र दिखाना चाहता हूँ।”

 प्राचार्य ने उस भाषा को जानने वाले सदस्य से कुछ सवाल किए। यह भी पूछा कि इस पूरे प्रकरण के बारे में वे क्या कहना चाहेंगे। उन्होंने कहा कि वे अपनी राय के साथ ई-मेल भेजेंगे, इस प्रकरण के हर पहलू पर विचार करने के बाद ही कुछ कह पाएँगे।

एक दिन निकला, दो दिन निकले। मिस हैली को इस बात का अहसास था कि वह गले-गले तक फँसी हुई है। मिस्टर कार्लोस को पता था कि जीत दूर नहीं है। सारे साक्ष्य चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि मिस हैली ने गलत किया है।

अगले दिन दोनों को एक-एक ई-मेल मिली। हैली के लिए लिखा गया था- “यह आपके कार्यक्षेत्र में था। कवियों-लेखकों और व्याकरण के बारे में पढ़ाना पाठ्यक्रम का एक हिस्सा था। आपने उसी को दोहराया, कोई गलत काम नहीं किया।”

मिस्टर कार्लोस के लिए लिखा गया था– “यह पाया गया कि अनर्गल आरोपों के साथ आपने एक मेहनती और उदार प्राध्यापक को मानसिक त्रास पहुँचाया है। यह अपने अधिकार का गलत प्रयोग है। आपको तत्काल अपना माफ़ीनामा मिस हैली को भेजना चाहिए व प्रतिलिपि मुझे भी, ताकि भविष्य में ऐसे अनर्गल आरोपों वाले मामले में आप अपना व पूरे तंत्र का समय नष्ट न करें।”

एक चींटी ने एक हाथी से टक्कर ली थी और उसे गोल-गोल घुमा दिया था। चकरी घिन-घिन घूम रही थी परन्तु दिशा उसकी अपनी थी। चाहे तो विपरीत दिशा में घूमे या सामने घूमे। घूमना तो उसकी नियति है लेकिन दिशा का निर्धारण करने की स्वतंत्रता है उसे। विभागाध्यक्ष मिस्टर कार्लोस ने माफ़ीनामा भेजा, भेजना पड़ा क्योंकि इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था। बॉस की आज्ञा की अवहेलना तो नहीं की जा सकती परन्तु अब उस चकरी की डोरी और कस कर पकड़ ली थी जिसे घुमाना अब उन्हीं के हाथ में रहे, किसी और के हाथ में नहीं। देख लिया जाएगा, कहीं न कहीं तो वे इसका बदला ले ही लेंगे। अपने कार्यक्षेत्र में कार्य को कितना घुमाया-फिराया जा सकता है, इसका तजुर्बा है उन्हें।

लेकिन अगले दिन फिर से पासा उलटा पड़ गया। उनकी मेज पर मिस हैली का त्यागपत्र रखा था। मिस्टर कार्लोस को पहली बार लगा जैसे उन्हें जोर का धक्का दे दिया गया हो। न जाने वह धक्का डीन के निर्णय ने दिया था या उस त्यागपत्र ने जो लिफाफे से बाहर आकर उन्हें धकेल गया था। वे चाहते थे कि एक बार उसे उसकी औक़ात दिखा दे और फिर वह चली जाए लेकिन वह जीत कर नौकरी छोड़ कर जा रही थी। उसका जीत कर जाना मिस्टर कार्लोस को अपने चेहरे पर एक तमाचे की तरह पड़ रहा था जो रह-रह कर अपने गाल सहलाने को मजबूर कर रहा था। बस यही कारण था कि दोबारा कुर्सी पाकर भी वह खुशी नहीं थी चेहरे पर जो मिस हैली के रहते इस समय उनके चेहरे पर होती। बार-बार एक ही बात खाए जा रही थी कि मिस हैली ने उन्हें कुर्सी सहित चकरी की डोरी से घुमा कर ऐसे छोड़ दिया था कि वे लगातार चकरघिन्नी की तरह घूमते ही जा रहे थे।

--हंसा दीप, कनाडा

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