उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।

अभिलाषा (काव्य)

Print this

Author: राजकुमारी गोगिया

दीप की लौ सा लुटा कर प्यार अपना
पा नहीं पायी हूँ अब तक प्यार सपना,
कह रहा है मन कि प्रियतम, पास आओ
जोह रहे हैं नयन मधु-मय प्यार अपना ।

तुम बड़े भोले हो देखो प्यार आया
प्यार की घुमड़न है देखो कौन लाया,
यह ऋतु सावन बहारें आ गई हैं
पुष्प कहते हैं कि मन-भावन न आया ।

लौट कर बादल मुझे कुछ कह गया है
प्यार भरने के लिये वह बह गया है,
धड़कने मन की विकल हो कह रही हैं
सह्म नहीं है वेदना, मन दह गया हैं ।

साधना के पुष्प मुरझाने लगे हैं
वेदना के गीत भी आने लगे हैं,
प्यार का उल्लास लेकर लौट आऔ
भावना से श्रंग बल खाने लगे है॥

-राजकुमारी गोगिया
ईमेल: gogiamuskan2002@gmail.com

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश