उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।

कहाँ तक बचाऊँ ये-- | ग़ज़ल (काव्य)

Print this

Author: ममता मिश्रा

कहाँ तक बचाऊँ ये हिम्मत कहो तुम
रही ना किसी में वो ताक़त कहो तुम

अंधेरी गली में भटकता दिया भी
कहाँ है उजालों की राहत कहो तुम

मिटी जा रहीं हैं यहाँ बस्तियाँ भी
रुकेगी ये कब तक आफ़त कहो तुम

खुदाया ज़रा एक दिखला करिश्मा
ज़रूरत कहो चाहे शिद्दत कहो तुम

मिटा कर जहाँ भी मिलेगा भला क्या
बनाना है दो ज़ख कि जन्नत कहो तुम

-ममता मिश्रा
 नीदरलैंड्स
 [साभार : मजलिस]

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश