मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।

दही-बड़ा (बाल-साहित्य )

Print this

Author: श्रीप्रसाद

सारे चूहों ने मिल-जुलकर
एक बनाया दही-बड़ा।
सत्तर किलो दही मँगाया
फिर छुड़वाया दही-बड़ा॥

दिन भर रहा दही के अंदर
बहुत बड़ा वह दही-बड़ा।
फिर चूहों ने उसे उठाकर
दरवाज़े से किया खड़ा॥


रात और दिन दही-बड़ा ही
अब सब चूहे खाते हैं।
मौज मनाते गाना गाते
कहीं न घर से जाते हैं॥

- श्रीप्रसाद

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश