उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।

पिता के दिल में माँ (काव्य)

Print this

Author: अमलेन्दु अस्थाना

उस दिन बहुत उदास थी माँ,
चापाकल के चबूतरे पर चुपचाप बैठी रही,
आसमान को काफी देर निहारती हुई एकटक,
माँ को माँ की याद आ रही थी,
और पिताजी ने मना कर दिया था नानी के घर पहुंचाने से,
उस दिन फीकी बनी थी दाल,
कई दिनों तक माँ-पिताजी के रिश्तों में कम रहा नमक,
रोटियां पड़ी रहीं अधपकी सी,
घर लौटे बिना खाए लेटे रहे पिताजी,
उस दिन गर्म दूध हमें देते वक्त टप से गिरे थे माँ के आंसू,
और फट गया था सारा दूध रिश्तों की तरह,
उस दिन सुबह पिताजी का तकिया भी भीगा हुआ सा मिला,
बहुत छोटा सा मैं उन दिनों समझ नहीं पाया रिश्तों की कशमकश,
आज जब मैंने रोक दिया बबली को मायके जाने से
तब शायद समझ पाया, वो पुरुष मानसिकता नहीं थी पिताजी की,
दरअसल वो बहुत प्यार करते थे माँ से,
नहीं रहना चाहते थे एक पल भी अलग,
और मुझे याद है कुछ दिन बाद,
पिताजी माँ और हमें छोड़ आए थे नानी के गांव,
और गर्मी छुट्टी बाद जब हम मामा संग लौटे,
शाम को चापाकल के उसी चबूतरे पर पिताजी मिले हमारा इंतजार करते हुए।

--अमलेन्दु अस्थाना
  *रचनाकार दैनिक भास्कर, पटना में चीफ सब एडिटर हैं।

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश