मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।

तू है बादल (काव्य)

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Author: लक्ष्मी शंकर वाजपेयी

तू है बादल
तो, बरसा जल

महल के नीचे
मीलों दलदल

एक शून्य को
कितनी हलचल

नाम ही माँ का
है गंगा जल

छाँव है ठंडी
तेरा आँचल

नन्ही बिटिया
नदिया कलकल

तेरी यादें
महकें हर पल

और पुकारो
खुलेगी सांकल

- लक्ष्मी शंकर वाजपेयी
[साभार - लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ब्लॉग]

 

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