साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
सबको लड़ने ही पड़े : दोहे  (काव्य)  Click to print this content  
Author:ज़हीर कुरैशी

बहुत बुरों के बीच से, करना पड़ा चुनाव ।
अच्छे लोगों का हुआ, इतना अधिक अभाव ।।


कहते हैं कुछ और वो, करते हैं कुछ और ।
ऐसे जन नायक बने, जनता के सिर मोर ।।


भरी जवानी में हुए घर को छोड़, फ़कीर ।
मरते दम तक भी उन्हें, चुभे मोह के तीर।।


घावों पर रखने लगे, शुद्ध नमक का प्यार
कलयुग में इतने बढ़े, मित्रों के अधिकार ।।


सबको लड़ने ही पड़े, अपने-अपने युद्ध ।
चाहे राजाराम हो, चाहे गौतम बुद्ध ।।


- ज़हीर कुरैशी


[ शोध दिशा 1994]

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