जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।
अँग्रेज़ी प्राणन से प्यारी। (काव्य)  Click to print this content  
Author:बरसाने लाल चतुर्वेदी

अँग्रेज़ी प्राणन से प्यारी।
चले गए अँग्रेज़ छोड़ि याहि, हमने है मस्तक पे धारी।
ये रानी बनिके है बैठी, चाची, ताई और महतारी।
उच्च नौकरी की ये कुंजी, अफसर यही बनावनहारी।
सबसे मीठी यही लगत है, भाषाएँ बाकी सब खारी।
दो प्रतिशत लपकन ने याकू, सबके ऊपर है बैठारी।
याहि हटाइबे की चर्चा सुनि, भक्तन के दिल होंइ दु:खारी।
दफ्तर में याके दासन ने, फाइल याही सौं रंगडारीं।
याके प्रेमी हर आफिस में, विनते ये नाहिं जाहि बिसारी।

-बरसाने लाल चतुर्वेदी

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