मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
हम देहली-देहली जाएँगे  (काव्य)  Click to print this content  
Author:मुमताज हुसैन

हम देहली-देहली जाएँगे
हम अपना हिंद बनाएँगे
अब फौ़जी बनके रहना है
दु:ख-दर्द, मुसीबत सहना है
सुभाष का कहना कहना है
चलो देहली चलके रहना है
हम देहली-देहली जाएँगे।

हम गोली खा के झूमेंगे
हम मौत को बढ़कर चूमेंगे
मतवाले बन आज़ादी के
हम दरिया जंगल घूमेंगे
हम देहली-देहली जाएँगे।

सुभाष हमारा साथी है
और रासबिहारी साथ ही है
फिर कैसा ख़तरा बाकी है
खु़दा हमारा साथी है
हम देहली-देहली जाएँगे।

हम फौजी बन के आएँगे
हम देहली तख़्त सजाएँगे
ज़ालिम फिरंगी क़ौम का
हम नामो-निशां मिटाएँगे
हम देहली-देहली जाएँगे
हम अपना हिंद बनाएँगे।

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गीतकार: मुमताज़ हुसैन,
संगीत : रामसिंह ठाकुर

 

 

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