मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
पहेलियाँ (विविध)  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन संकलन

भारत में पहेलियों (Riddles) का इतिहास व परम्परा बहुत पुरानी है। हमारे प्राचीन ग्रंथ ॠगवेद में बहुत सी पहेलियाँ हैं। उपनिषदों और हमारे संस्कृत काव्यों में भी पहेलियाँ पाई जाती हैं ।

पहेलियाँ मनोरंजन के साथ-साथ हमारा ज्ञान बढ़ातीं हैं ।

लोक साहित्य में सर्वप्रथम अमीर खुसरो ने पहेलियाँ बनाने का चलन आरम्भ किया। इससे पहले केवल संस्कृत साहित्य में ही पहेलियाँ  प्रहेलिका के नाम से पाई जाती थीं।

अमीर खुसरो ने बच्चों के लिए दो प्रकार की पहेलियों की रचना की:

१)

बूझ पहेली (अंतर्लापिका) जिनमें उत्तर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में पहेली में दिया गया होता है ।

२)

बिन बूझ पहेली या बहिर्लापिका - इनका उत्तर पहेली से बाहर होता है।

 

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