शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।
चाँद का कुरता  (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:रामधारी सिंह दिनकर

हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला,
"सिलवा दो माँ, मुझे ऊन का मोटा एक झिगोला।

सन-सन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूँ,
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।

आसमान का सफ़र और यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो कुरता ही कोई भाड़े का।"

बच्चे की सुन बात कहा माता ने, "अरे सलोने!
कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू-टोने।

जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ।

कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा।

घटता-बढ़ता रोज, किसी दिन ऐसा भी करता है,
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है।

अब तू ही तो बता, नाप तेरी किस रोज लिवाएँ,
सी दें एक झिगोला जो हर रोज़ बदन में आए?

-रामधारीसिंह 'दिनकर'

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश