उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।
जब धनुष सँभाला है | ग़ज़ल (काव्य)  Click to print this content  
Author:उदयभानु 'हंस'

हमने अपने हाथों में जब धनुष सँभाला है,
बाँध कर के सागर को रास्ता निकाला है।

हर दुखी की सेवा ही है मेरे लिए पूजा,
झोपड़ी गरीबों की अब मेरा शिवाला है।

अब करें शिकायत क्या, दोष भी किसे दें हम?
घर के ही चिरागों ने घर को फूँक डाला है।

कौन अब सुनाएगा दर्द हम को माटी का,
'प्रेमचंद' गूंगा है, लापता 'निराला' है।

झोपड़ी की आहों से महल भस्म हो जाते,
निर्धनों के आँसू में जल नही है ज्वाला है।

मैंने अनुभवों का रस जो लिया है जीवन से,
कुछ भरा है गीतों में, कुछ ग़ज़ल में ढाला है।

आदमी का जीवन तो बुलबुला है पानी का,
घर जिसे समझते हो, एक धर्मशाला है।

दीप या पतंगे हों, दोनों साथ जलते हैं,
प्यार करने वालों का ढंग ही निराला है ।

फिर से लौट जाएगा आदमी गुफाओं में,
'हंस' जल्दी ऐसा भी वक्त आने वाला है ।

- उदयभानु हंस
  राजकवि हरियाणा

Previous Page  |  Index Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश