वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
बोझा | लोक कथा (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन संकलन

एक कुम्हार गधे पर नमक का परचूनी व्यापार करता था। रास्ते में एक नदी पड़ती थी। नदी पार करने में गधे की आफत आ जाती थी। एक दिन अनजाने में उसका पांव फिसल गया। पीठ पर बंधा सारा नमक गलकर बह गया। गधे की मनचाही हो गई। उसके बाद तो गधे ने यही लत पकड़ ली। नदी आते ही पानी में बैठ जाता।

कुम्हार बड़ा परेशान। उसकी इतनी हैसियत न थी कि लगातार इस हानि को बरदाश्त करे। आखिर नमक का व्यापार बंद करना पड़ा। एक दिन वह ऊन का बोरा गधे पर लाद कर लाया। गधे को तो आदत ही वैसी पड़ गई थी। नदी के बीच पानी में बैठ गया। थोड़ी देर आराम करने के बाद जब खड़ा हुआ तो जाने बोझ का पर्वत ही ऊपर आ पड़ा। खड़ा होने के साथ ही धड़ाम से वापस नीचे आ गिरा।

मामूली अक्ल के बोझ से उसकी कमर टूट गई। मौत के पहले ही उसे मरना पड़ा।

Previous Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश