साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
भारत-दर्शन संकलन (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:मानसप्रेमी ग्राओस और वैरागी

फडरिक सैमन ग्राओस (Frederic Salmon Growse) पुराने अंग्रेजी आई०सी०एस० थे। वे उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों में कलेक्टर रह चुके थे। हिन्दी से उन्हें प्रेम था और रामचरितमानस का उन्होंने अंग्रेजी गद्य में अनुवाद किया था। यह किसी यूरोपीय भाषा में मानस का यह प्रथम अनुवाद था। जब वे मथुरा में जिला मजिस्ट्रेट थे, एक वैरागी साधु किसी घृणित अपराध में उनकी अदालत में पेश किया गया। पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल किया तो ग्राओस साहब ने उसे अपनी सफाई पेश करने के लिए कहा। खाखी सम्प्रदाय के वैरागी साधु मानस का पाठ प्रायः करते हैं। अपराधी साधु जानता था कि उसने अपराध किया है और अपने बचाव के लिए उसके पास कोई तर्क नहीं है, इसलिए उसने अदालत में कहा-

"होइहैं सोई जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढावहि साखा॥"

मजिस्ट्रेट ग्राओस ने आरोपी की स्थिति को समझ लिया और उन्होंने उसका उत्तर भी तुलसीदास की ही भाषा में दिया--

"कर्म प्रधान विस्व करि राखा।
जो जस करहि सो तस फल चाखा॥"

अब वैरागी के पास भला कहने को क्या था! उसे दण्ड तो भोगना ही था।

[भारत-दर्शन संकलन]

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