मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
मुहावरे | बाल कविता (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:श्रीनाथ सिंह 

माथ पर मत हाथ रक्खो हर घड़ी। 
है अजब औंधी तुम्हारी खोपड़ी॥ 
खींचते हो बाल की भी खाल क्यों? 
और करते आँख हो यों लाल क्यों? 
कान मेरी बात को देते अगर। 
आँख नीची कर विदा लेते अगर॥ 
तो न सिर पर आज पर्वत टूटता। 
इस बुराई का न भंडा फूटता॥
नाक में दम आप अपने कर लिया। 
अब सदा को हाथ उससे धो लिया॥ 
है रहा देखो कलेजा कांप सा। 
लोट सीने पर गया है सांप सा॥ 
आंख किससे जा अचानक लड़ गई?
ढोल यह कैसी गले में पड़ गई! 
मूँछ क्या अब सर्वदा को मुड़ गई? 
हाथ में आई भी चिड़िया उड़ गई॥ 
अब फलाते गाल हो किसके लिये? 
पीठ पीछे ध्यान हैं किसने दिये? 
पेट ही में बात यह रहते धरे।
पैर होगा पीटने से क्या हरे? 
है समय कस कर कमर तैयार हो। 
मुँह न बाओ इस तरह लाचार हो॥
सूखती है जान तो थे किसलिये। 
सांप के मुँह में बड़ा अँगुली दिये!

- श्रीनाथ सिंह 

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