वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
बन्नो देवी | लोक-कथा (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन संकलन

बन्नो देवी

हिमालय की गोद में एक गाँव था। वहाँ गद्दी जाति का एक किसान अपने रेवड़ के साथ जा रहा था। वह बहुत ही अच्छी बंसी बजाता था । उसकी बंसी को सुनकर भालू और शेर भी शिकार करना भूल जाते थे ।

मौसम साफ हो गया था। बर्फ पिघल चुकी थी। वह बंसी बजाता आगे बढ़ रहा था।

अचानक गड़गड़ाहट की आवाज़ हुई। एक बिजली-सी चमकी और चारों ओर अद्भुत प्रकाश छा गया, सोने के रंग जैसा। किसान ठगा-सा रह गया। उसने देखा, सामने की एक पहाड़ी फट गई है। जहाँ से पहाड़ी फटी, वहाँ एक कंदरा बन गई थी।

किसान की बंसी उसके ओठों पर ज्यों-की-त्यों ठहर गई। वह उस जादू भरे दृश्य को देखने लगा। उसने देखा, सामने एक सुंदर स्त्री खड़ी थी । उसने काले रंग की घघरिया पहन रखी थी। सिर पर लाल रंग का दुपट्टा बाँध रखा था। उसके हाथों के स्थान पर मोर के पंख थे।

किसान भयभीत था। तभी वह बोली - "मैं बन्नो देवी हूँ। तेरी बंसी ने मुझे मोहित कर लिया है। घबरा मत। मैं तुझे बहुत-सी भेड़-बकरियाँ देती हूँ। लेकिन यह घटना किसी को मत बताना। हाँ, मेरे नाम का एक मंदिर यहाँ जरूर बनवा देना । "

बन्नो देवी यह कहकर अंतर्धान हो गई। किसान ने देखा कि पहाड़ी की उस कंदरा से एक के बाद एक भेड़-बकरियाँ निकलती आ रही हैं। उसने सोचा- "इतना रेवड़ मैं क्या करूँगा? क्यों न अपने गाँववालों को भी बाँट दूँ ।"

पहले तो किसी को विश्वास नहीं हुआ लेकिन बाद में सभी बूढ़े बच्चे उसके साथ हो लिए। वे गुफा के पास पहुँचे। तभी एक गड़गड़ाहट हुई। जितनी भेड़-बकरियाँ कंदरा से निकली थीं, उसी में वापस चली गई। 

बात की बात में रेवड़ की जगह शिलाएँ नज़र आने लगी। लोभ में फँसा सारा गाँव वापस लौट गया। वह किसान उदास था। उसकी बंसी भी कहीं खो गई थी। हाँ, बच्चों को कुछ बकरियों के बच्चे जरूर मिल गए।

इन बच्चों ने बड़े होकर एक मंदिर बनवाया। बन्नो देवी अमर हैं। हिमाचल प्रदेश में उनकी पूजा की जाती है। गाँव के लोग आज भी उस घटना को दोहराते हैं। गाँववालों का विश्वास है कि अगर वह किसान गाँववालों को न बताता तो उसे भेड़ बकरियाँ मिल जातीं।

(भारत-दर्शन संकलन: एक गद्दी लोककथा)

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