शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।
शान्तिप्रसाद वर्मा के दो गद्य गीत (विविध)  Click to print this content  
Author:शान्तिप्रसाद वर्मा

दो आँखें

प्रियतम, इन दो आँखों में तुमने अपनी सारी मदिरा उँडेल दी ! तुम्हारे रूप की सुधा का पान करने के लिए हृदय सिमिट कर इन दो आँखों में आ बैठा है। तुम्हारे सौंदर्य का संगीत सुनने के लिए कान खिसक कर आँखों के अन्तस्तल में छिपे हैं। नेत्र वंचित ये दोनों पलकें तुम्हारे अनन्त लावण्य का केवल अनुभव कर बेसुध पड़े हैं।

यदि आँखों को बन्द करता हूँ तो तुम्हारे खो जाने का भय हो जाता है। यदि आँखों को खुला रहने देता हूँ तो अपने खो जाने का भय हो जाता है। विकराल वासनाएँ पिघल कर इन दो आँखों में आ बसी हैं। आज इनमें कामना की ज्वाला धधक रही है।

प्रियतम, प्रतीक्षा की चिर-जागृति से प्रज्वलित इन दो आँखों में तुम बैठो तो मैं अपने भीगी पलकों को बन्द कर चिर-निद्रा की विश्रान्ति में सो जाऊँ!

- शान्तिप्रसाद वर्मा
  [अक्टूबर 1919]

#

तुम?

तुम? कौन हो? कहाँ हो? मेरे हृदय के गुप्त अन्तस्तल में बैठे हुए क्या तुम्हीं मेरे भावों का मन्थन कर रहे हो? मेरी आत्मा के गूढ़ अन्तर में छिपे हुए क्या तुम्हीं मेरे विचारों का नियन्त्रण कर रहे हो?

मेरी वाणी के हलके परदे में उतर कर क्या तुम्हीं मेरे वचनों को कोमल बना रहे हो? मेरी लेखनी के अग्रभाग से खिसक कर क्या तुम्हीं मेरी कविता में सौंदर्य भर रहे हो?

तुम? कौन हो? कहाँ हो?

- शान्तिप्रसाद वर्मा
  [अक्तूबर 1921 ]

Previous Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश