साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
एक और महाभारत (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:संदीप तोमर

वो पांच भाई थे। मझले का नाम भीमा था। दंगे और दंगल दोनो का ही उस्ताद। घर में फाँकें लेकिन पहलवानी का इतना जुनून कि घर का आधा राशन खुद ही निपटा दे। भाई अपने हिस्से का राशन खाने की शिकायत करते तो कहता -"देखना एक दिन इस सारे राशन की कीमत अदा कर दूंगा और यही पहलवानी एक दिन हम सबको मालामाल कर देगी।"

सब ही उसकी बात पर हँस देते। एक दिन उसे पता चला कि पास के गांव के मुखिया ने एक दंगल रखा है। भीमा चारो भाइयों को लेकर दंगल पहुँच गया।

वहाँ जाकर पता चला कि मुखिया खुद पहलवानी करता था। आज उसने घोषणा की है कि जो भी पहलवान दंगल का विजेता होगा उससे अपनी अत्यंत गुणवान और रूपवान पुत्री की शादी कर देगा।

चार-छह घण्टे तक चले दंगल में आखिर भीमा जीत ही गया। पांचों भाई खुशी से उछल रहे थे।

मुखिया ने वादे के मुताबिक बेटी का हाथ भीमा के हाथ में थमा दिया। साथ ही धन इत्यादि के साथ विदा किया। भीमा खुशी-खुशी भाइयों के साथ घर की तरफ चल पड़ा।

घर पहुंचा तो दरवाजे से ही आवाज लगाई-" माँ, माँ देखो आज मैं दंगल में क्या जीत कर लाया हूँ?"

माँ ने बिना देखे कहा-"जो भी लाये हो आपस में बाँट लो।"

भीमा या उसके भाई कुछ कहते उससे पहले ही मुखिया की बेटी कह उठी-"माँ जी, मैं द्रौपदी नहीं हूं। मुझे बंटवाकर एक और महाभारत रचाने का इरादा है क्या?

भीमा के भाइयों के चेहरे पर आई खुशी पलभर में गायब हो चुकी थी।

-संदीप तोमर

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