शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।
साल मुबारक!  (काव्य)  Click to print this content  
Author:अमृता प्रीतम

जैसे सोच की कंघी में से
एक दंदा टूट गया
जैसे समझ के कुर्ते का
एक चीथड़ा उड़ गया
जैसे आस्था की आँखों में
एक तिनका चुभ गया
नींद ने जैसे अपने हाथों में
सपने का जलता कोयला पकड़ लिया
नया साल कुझ ऐसे आया…

जैसे दिल के फ़िक़रे से
एक अक्षर बुझ गया
जैसे विश्वास के काग़ज़ पर
सियाही गिर गयी
जैसे समय के होंटो से
एक गहरी साँस निकल गयी
और आदमज़ात की आँखों में
जैसे एक आँसू भर आया
नया साल कुछ ऐसे आया…

जैसे इश्क़ की ज़बान पर
एक छाला उठ आया
सभ्यता की बाँहों में से
एक चूड़ी टूट गयी
इतिहास की अंगूठी में से
एक नीलम गिर गया
और जैसे धरती ने आसमान का
एक बड़ा उदास-सा ख़त पढ़ा
नया साल कुछ ऐसे आया…

-अमृता प्रीतम

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