मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
रोचक दोहे  (काव्य)  Click to print this content  
Author:विकल

यह दोहे अत्यंत पठनीय व रोचक हैं चूंकि यह असाधारण दोहे हैं जिनमें न केवल लोकोक्तियाँ तथा मुहावरे प्रयोग किए गए हैं बल्कि उनका अर्थ भी दोहे में सम्मिलित है।

एक समय में जब 'विकल' करते हों दो काम ।
दुविधा में दोऊ गये, माया मिली न राम ।।

यत्न किये बिन वस्तु क्या ? मन चाही मिल जाय ।
'विकल' न रोये बिन कभी, माता दूध पिलाय ॥

एक वस्तु से ले लिये, जब हमने दो काम ।
'विकल' आम के आम हैं, औ' गुठली के दाम ।।

'विकल' समय जाता रहा, अब रोता किस हेत ।
क्या पछताये होत जब, चिड़ियां चुग गई खेत ।।

'विकल' न छोटों की सुने, हो जहें बड़ा समाज ।
नक्कारों ने कब सुनी, तूती की आवाज ।।

खाकर धोखा फिर 'विकल' करै न वैसी चूक ।
जला हुआ ज्यों दूध का, पिये छाछ को फूंक ॥

जो महान होते 'विकल' लक्षण शिशु दिखलात ।
होनहार बिरवान के, होत चीकने पात ।।

जहाँ शक्ति सीमित रहे, उसका यही निचोड़ ।
मसजिद तक ही तो 'विकल' है मुल्ला की दौड़ ।।

गले जबरदस्ती पड़े 'विकल' न कुछ पहचान ।
मान भले मत मान तू, मैं तेरा मेहमान ॥

आश्रय दाता का बने, शत्रु! अरे कब खैर ।
जल में रह कर के 'विकल', करै मगर से बैर ॥

गुप्त सलाह एकान्त में, करो! बात मम मान ।
हो जाते हैं 'विकलजी' दीवारों के कान ।।

-विकल

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