हमारी हिंदी भाषा का साहित्य किसी भी दूसरी भारतीय भाषा से किसी अंश से कम नहीं है। - (रायबहादुर) रामरणविजय सिंह।
विडम्बना (काव्य)    Print  
Author:रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया
 

मैंने जन्मा है तुझे अपने अंश से
संस्कारों की घुट्टी पिलाई है ।
जिया हमेशा दिन-रात तुझको
ममता की दौलत लुटाई है ।

तेरे आँसू के मोती सहेजे हमेशा
स्नेह की सुगंध से महकायी है ।
उच्च विचारों की आचार-संहिता
भी तुझे सिखाई-समझाई है ।

हर पल अपने सपनों में तेरे लिए
खुशियों की बारात सजाई है ।
फिर भी क्यों कहती है दुनिया
बेटी तू मेरी नहीं पराई है ।

साजन की दहलीज पर जब पहुँची
तब माना गया तू परजायी है ।
रीति-रिवाजों की ये क्रूर-श्रृंखला
आखिर क्यों तेरे लिए बनाई है?
आखिर किसने तेरे लिए बनाई है??

- रीता कौशल, ऑस्ट्रेलिया

 

PO Box: 48 Mosman Park
WA-6912 Australia
Ph: +61-402653495
E-mail: rita210711@gmail.com

 

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश