वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
दीवानी सी | कविता (काव्य)    Print  
Author:डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड
 

एक औरत जो दफन बरसों से
उसने न जाने कैसे
सांसों के आरोह-अवरोह में
कहीं सपने चुनने-बुनने
आरंभ कर दिए...!

यूँ तो प्रकृति कहीं मरुस्थल-सी..
पर स्वेद-जल-समुद्र-से
पाकर प्रेम-ऊष्मा-ताप यूँ ही ..
बरसी-रिमझिम-पगलाई-सी..

भीगी कमली-सी
फ़िर ओढ़ तितली पंख-छतरी
नाची यूँ दीवानी-दीवानी सी..!

-डॉ॰ सुनीता शर्मा
 ऑकलैंड, न्यूज़ीलैंड
 ई-मेल: adorable_sunita@hotmail.com

[चिर-प्रतीक्षित]

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