जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।
कृतघ्नता (काव्य)    Print  
Author:पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
 

चन्द्र हरता है
निशा की कालिमा,
हृदय की देता
उसे है लालिमा॥

किन्तु होकर लोक-
निन्दा से अशंक,
निशा देती है
उसे अपना कलंक॥

-पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी

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