मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
कलम इतनी घिसो, पुर तेज़--- | ग़ज़ल (काव्य)    Print  
Author:संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया
 

कलम इतनी घिसो, पुर तेज़, उस पर धार आ जाए
करो हमला, कि शायद होश में, सरकार आ जाए

खबर माना नहीं अच्छी, मगर इसमें बुरा क्या है
कि जूते पोंछने के काम ही अखबार आ जाए

दिखाओ ख्वाब जन्नत के, मगर इतना न बहकाओ
कहीं ऐसा न हो, वो बेच कर घर बार आ जाए

जिसे हर बज़्म ने तहसीन से महरूम रक्खा है
हमारी बज़्म में या रब, वही फनकार आ जाए

मज़ा छुट्टी का दोनों ओर से आधा हुआ जानो
अगर इतवार के दिन ही कोई त्योहार आ जाए

इसी उम्मीद से हर रोज़ खुलता है कुतुबखाना
दवा को ढूंढता, शायद,कोई बीमार आ जाए

अभी पर्दा गिराने में ज़रा सी देर बाकी है
ये मुमकिन है कहानी में नया किरदार आ जाए

-संध्या नायर, ऑस्ट्रेलिया

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