जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।
नंगोना (काव्य)    Print  
Author:सुभाष मुनेश्वर | न्यूज़ीलैंड
 

जहाँ नंगोने की थारी
वहाँ जनता है उमड़ी भारी,
सिकुड़ गई चेहरे की चमड़ी
बिगड़ी है सूरत प्यारी,
फिर भी कुटे और छने नंगोना
चल रही प्याली पर प्याली।

बेटा बिना फीस दे पढ़ता
बेटी बिन पुस्तक के,
फिर भी बापू रात-रात भर
पिये नंगोना कसके।

कभी-कभी भोजन भी दूभर
घर में पड़ गये लाले,
फिर भी बापू पिये रात भर
दिन में खाट सम्भाले।

माता जी रोके-टोके तो
झाड़ पड़े या पेटी,
यही नंगोना फीजी का है
कहें "सजीवन बूटी"।

-सुभाष मुनेश्वर, वैलिंगटन
 न्यूज़ीलैंड
 ई-मेल : smuneshwar@gmail.com

[कावा, फीजी में नगोना के रूप में जाना जाता है।  यह दक्षिण प्रशांत संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो पूरे क्षेत्र में विश्राम और तनाव मुक्ति के लिए उपयोग किया जाता है। कावा पौधे की पीसी हुई जड़, पानी में घोलकर और एक किरकिरा मटमैला तरल पेय तैयार किया जाता है। पहली बार उपयोग करने वाले को कभी-कभी मिट्टीयुक्त पानी का स्वाद आता है।  इस पेय से मुंह हल्का सुन्न हो जाता है और सामान्यत व्यक्ति शांत ही रहता है।]

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश