उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।
तेरी हैवानियत (काव्य)    Print  
Author:श्रद्धांजलि हजगैबी-बिहारी | Shradhanjali Hajgaybee-Beeharry
 

हैवानियत तेरी
भूखी थी इतनी
एक ही दम में
निगल ली
हरेक अच्छाई मेरी
मेरा स्नेह, मेरी ममता
मेरी कोमलता, मेरे स्वप्न
मेरा अक्स...

रोम रोम में बसा है
तेरे पुरुषत्व पर, तेरे नाज़ का हरेक निशान

दीवारों से टकरा कर
लौट जाता है
हरेक उलाहना
दर्द में,
नीरीह पड़ा है
विचारों के दलदल में
विभत्स चेहरा मेरा

नि:शब्द
मेरी चीख ने
चीर डाला है रक्त मांस मेरा
चिथड़े पड़े होंगे मेरे शरीर के
किसी कोने में

.. कि कोई आकर
अंतिम संस्कार तो कर दे
मेरा

लेकिन कैसे अभिव्यक्त कर दूँ?
जब पाषाण बना खड़ा है
अधिकार मेरा

मुक्ति मेरी..शायद कटघरे में खड़ी-खड़ी
दम तोड़ दे
और शायद वही अंत हो।

- श्रद्धांजलि हजगैबी-बिहारी
ईमेल : hajgaybeeanjali@gmail.com

 

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश